Sindhusena

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Sindhusena (सिन्धु सैन) (326 BC) was an ancient King of Sindh, Pakistan.

Jat Gotras

History

सिन्धु सैन

ठाकुर देशराज लिखते हैं कि जिस समय सिकन्दर ईरान पर हमला करने के लिए बढ़ रहा था, उस समय पर्शिया के अधीश्वर शैलाक्ष (सेल्यूकक्ष) ने सिन्धु देश के राजा सिन्धु सैन के पास, जो कि सिन्धु के जाटों के गणतंत्र के अध्यक्ष थे, सहायता के लिए याचना की। महाराज ने यहां से तीर-कमान और बर्छे धारण करने वाले सैनिकों को उसकी सहायता के लिए भेज दिया। हेरोडोटस ने इस लड़ाई के सम्बन्ध में लिखा है कि सिकन्दर की सेना के जिस भाग पर जेटा लोग झुक जाते थे वही भाग कमजोर पड़ जाता था। उसके योद्धा लोग रथों में बैठकर लड़ते थे। वह अपनी कमान को पैर के अंगूठे से दबाकर और कान की बराबर तानकर तीर छोड़ते थे। सिकन्दर को स्वयं इनके मुकाबले के लिए सामने आना पड़ा था। इसी समय बिलोचिस्तान में राजा चित्रवर्मा राज करता था। कुलूत उसकी राजधानी थी।

इससे पहले जाटों को हम साइरस की सहायता देते हुए भी पाते हैं। साइरस ईसा से 600 वर्ष पूर्व हुआ था। बेबोलिनिया के लोगों से उसे युद्ध करना था। उस समय सिन्धु लोगों के अधीश्वर सिन्धुराज ने एक प्रतिनिधि-मंडल इस बात की जांच करने के लिए भेजा था कि जांच करो कि कौन-सा पक्ष न्याय पर है जिसे कि सहायता दी जाए। अन्त में साइरस का पक्ष न्याय-संगत ज्ञात हुआ, इसलिए


1. मौर्य-साम्राज्य का इतिहास, लेखक सत्यकेतु विद्यालंकार


जाट इतिहास:ठाकुर देशराज,पृष्ठान्त-699


उसे सहायता दी गई। यहां से जो सेना गई थी, उसके पास सूती-वर्दी और तीर-कमान थे। सिन्धुराज की इस सहायता से साइरस की विजय हो गई। कर्नल टाड ने इस समय के जाट-जाति के वैभव के लिए निम्नलिखित शब्दों का प्रयोग किया है।

साइरस के समय में ईसा से 600 वर्ष पहले इसी बड़ी जेटिक जाति के राजकीय प्रभाव की यदि हम परीक्षा करें तो यह बात हमारी समझ में आ जाएगी कि तैमूर की उन्नत दशा में भी इन जातियों का पराक्रम ह्रास नहीं हुआ था।”

जिस साइरस को जाटों ने सहायता दी थी, उसी ने इनकी स्वाधीनता का भी अपहरण करना चाहा था। इसी से उन्हें साइरस से भी लोहा लेना पड़ा था। निरन्तर लड़ाई करते-करते उन्हें सतलुज पार उतरना पड़ा। इस लड़ाई से पीछे को हटने की घटना ने जाटों के हृदय को बड़ा धक्का पहुंचाया। पंजाब के जाट अब तक कहते रहते हैं कि सिन्धु छोड़ देने के कारण हम नीचे हो गए हैं।1

References


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